भगवान के प्रति समर्पण का भाव भक्ति कहलाता है। भक्त की उत्कट लालसा उसे भक्ति के लिये प्रेरित करती है। नाम जप, योगाभ्यास, कथा और कीर्तन जैसे माध्यमों से भक्त अपने भगवान को रिझाकर उनकी कृपा प्राप्त करता है।
भक्ति भाव है या रस यह तो नहीं पता, लेकिन भक्ति के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त अवश्य किया जा सकता है। प्रत्येक युग में विशेष शक्ति सम्पन्न भक्तों ने जन्म लिया है। भावना का विस्तार ही भजन का लक्ष्य है। संगीत के माध्यम से जब भक्ति गीतों को प्रस्तुत किया जाता है तो उनसे पूरे वातावरण में सात्विक गुण की वद्धि होने लगती है और मनुष्य की चेतना ऊर्ध्वमुखी होकर परमात्मा में विलीन होंने लगती है। यही भक्तिपरक गान का लक्ष्य है। भक्ति संगीत की धारा वैदिक काल से लेकर आज तक निरंतर प्रवाहित हो रही है। भिन्न भिन्न सन्तों के द्वारा रचे गये काव्य को संगीतकारों ने अपने अपने बंग से प्रस्तुत किया है। इनमें से अनेक भजन या भक्ति गीत बहुत लोकप्रिय रहे हैं। यही कारण है कि ऐसे भजनों का संगीत विभिन्न संगीत रचयिताओं द्वारा तैयार करके सुकंठ के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता रहा है और इसीलिए उनका व्यापक प्रचार हुआ है। प्रस्तुत ग्रंथ में ऐसे भक्ति गीतों को चुना गया है जो रिकार्डो के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रियता प्राप्त कर चुके हैं। सरलता और मधुरता के कारण इनका विशेष प्रचार हुआ है। उन्हीं भक्ति गीतों को चुनकर इस ग्रंथ में दिया जा रहा है, जिनका स्वरांकन किया है श्री देवकीनंदन धवन ने। अंतःकरण की शुद्धि के लिए यह समस्त भजन साधक के लिए एक वरदान सिव होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। शव्द के साथ जर नाद की शक्ति मिल जाती है तो उसके प्रभाव में भी वृद्धि हो जाती है। इसीलिए कहा गया है कि पूजा से करोड़ गुना प्रभावकारी स्तोत्र पाठ है, स्तोत्र पाठ से करोड़ गुना अधिक महत्वपूर्ण मंत्रजप है और जप से भी करोड़ गुना अधिक भक्ति गान है, भक्ति गान से बढ़कर कुछ भी नहीं है। यह समस्त मनन आज के संतप्त मानव को सुख और शान्ति प्राप्त करेंगे ऐसा विश्वास है।